Offset Printing 4color & 6color branding
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रंगों की जंग
एक छोटे से शहर में, जहाँ जीवन धीरे-धीरे बहता था, वहाँ दो प्रिंटिंग प्रेस थे – ‘रंगों का जादू’ और ‘छपाई का सफ़र’. दोनों प्रेसों के मालिक, रमेश और अनिल, एक दूसरे से कड़े प्रतिस्पर्धी थे। रमेश, ‘रंगों का जादू’ के मालिक, एक युवा और ऊर्जावान व्यक्ति था, जो नए फ़ैशन के पीछे भागता था और चार रंगों की प्रिंटिंग में माहिर था। अनिल, ‘छपाई का सफ़र’ के मालिक, एक अनुभवी और धैर्यवान व्यक्ति था, जो छह रंगों की प्रिंटिंग के लिए जाना जाता था और पारंपरिक तरीकों पर भरोसा रखता था।
एक दिन, शहर में एक बड़ा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होने वाला था। दोनों प्रेसों को कार्यक्रम के ब्रांडिंग का काम मिला, जिसमें बड़े पोस्टर और ब्रोशर छापना था। रमेश ने अपनी चार रंगों की प्रिंटिंग में बेहतरीन रंगों और डिज़ाइन से कार्यक्रम को जीवंत बनाने का वादा किया। अनिल, अपने छह रंगों की प्रिंटिंग के साथ, कला के ज़रिए कार्यक्रम को एक अद्वितीय पहचान देने का दावा करता था।
दोनों प्रेसों के बीच प्रतिस्पर्धा की जंग छिड़ गई। रमेश, अपने नए मशीनों और तेज़ प्रिंटिंग के साथ, अनिल को पछाड़ने की कोशिश कर रहा था। अनिल, अपने अनुभव और पारंपरिक तकनीकों से, रमेश को चुनौती दे रहा था। उनकी प्रतिस्पर्धा इतनी तीव्र हो गई कि उनके कर्मचारियों के बीच भी दरारें पैदा हो गईं।
एक दिन, कार्यक्रम के कुछ दिन पहले, रमेश को अपनी मशीन में एक गंभीर तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा। वह अपने वादे को पूरा करने के लिए बेबस हो गया। अनिल ने यह मौका नहीं छोड़ा और अपने छह रंगों की प्रिंटिंग से कार्यक्रम के ब्रांडिंग को अद्भुत तरीके से पूरा किया।
रमेश अपनी हार से निराश था। लेकिन अनिल, अपनी जीत में गर्व से बढ़ने के बजाय, रमेश की मदद के लिए आया। उसने अपनी मशीन और कर्मचारियों को रमेश के साथ साझा किया और उसे समय पर कार्य पूरा करने में मदद की।
इस घटना ने दोनों प्रेसों के बीच एक नए संबंध की शुरुआत की। उन्होंने समझा कि प्रतिस्पर्धा सही होनी चाहिए, लेकिन एक दूसरे की मदद करना भी जरूरी है। उनकी प्रतिस्पर्धा अब एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में बदल गई और दोनों ने अपने अपने रंगों के ज़रिए शहर के विकास में योगदान देना शुरू कर दिया।
रंगों की जंग खत्म हो गई थी, लेकिन रंगों का जादू जारी रहा।